Thursday, 8 May 2025

Kanupriya

Reminiscences from my diary
May 08, 2025
Thursday 2115 IST
Murugeshpalya, Bangalore


साजन मिश्र 
अपने साथी की याद लिए 
जप रहे हैं  
राधे राधे 

राग दरबारी 

कि राधे राधे जपते जपते
मिल जाए 
मिल ही जाए 
चितचोर 

चलो मन वृंदावन की ओर 

जिस शिद्दत 
और ध्यान से 
वह पुकारते हैं राधा नाम 
मैं रो पड़ता हूँ  

राधारानी का प्रेम 

सोचता हूँ 
कैसे जिया होगा राधा ने 
कृष्ण के होने से 
अचानक न होने का सफर 

कितने पत्थर पाले होंगे 
सीने पर 
कितनी पीड़ सही होगी 
रेशा रेशा 

आसमान के
किसी भी नक्षत्र को 
तरस नहीं आया होगा क्या
कि एक तारा भी न टूटा 

प्रेम की महानता के लिए बिछोह अनिवार्य है? 

चुनना होता 'गर
कृष्ण के साथ जीना 
या साथ जिए बिना कृष्ण की बगल में खड़े 
कल्पों-कल्प पूजे जाना 

राधा क्या चुनतीं ?

मेरे लिए 
राधा का प्रेम 
नियति की क्रूरता की पराकाष्ठा है
नहीं जाना मुझे वृन्दावन 

मुझे पढ़नी है कनुप्रिया  





No comments:

Post a Comment