Thursday, 1 May 2025

Where I flee (Letters to you - 19)

Reminiscences from my diary
May 01, 2025
Thursday 1500 IST
Stumpfield, Ooty

जितना महीन अंतर होता है 
खुलने और उधड़ने में 

उतना ही फ़र्क़ है बस 
भटकने और ग़ुम हो जाने में 

भटकने में रहती है उम्मीद, एक संभावना 
पा जाने की, या मिल जाने की 

और जो ढूँढ पाए तुम्हें कोई 
तो उपजती है टीस दम घोटने वाली  

इसलिए भटको नहीं, खुलो नहीं महज़ 
उधड़ो, खो दो खुद को पूरा का पूरा 

तुम्हें लगता है 
चेहरे ग़ुम हो जाते हैं भीड़ में 

गलत लगता है 
ग़ुम होती है भीड़ चेहरों में कहीं 

मैं कब उधड़ा, फिर कब भीड़ बन गया 
पता ही नहीं चला 

और जब हो ही गया हूँ 
जो बच सकता था होने से शायद 

तो ग़ुम होना चाहता हूँ पूरा का पूरा 
भीड़ सा ही, चेहरों में एक चेहरा 

जिसकी शिनाख़्त कभी भी
कहीं भी न हो पाए 


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