A poem on least favorite food (Letters to you - 18)
Reminiscences from my diary
Apr 29, 2025
Tuesday 2000 IST
Murugeshpalya, Bangalore
मुझे
माँ के हाथ के
राजमा चावल
शदीद पसंद हैं
रंग से लेकर
स्वाद तक
सब कुछ अलग
बहुत अलग
न लाल
न भूरा
माँ के राजमा का रंग
मैरून होता है
पता नहीं कैसे ले आती हैं
इतना सुन्दर रंग
पूछता हूँ
तो हँस देती हैं बस
गुजराती ननिहाल है मेरा
शायद इसलिए या शायद यूँ ही
माँ का राजमा होता है
महीन - सा मीठा भी
डालती हैं उबलते राजमा में
आधी से भी कम चम्मच चीनी
या शक्कर, और चुटकी-भर से ज़रा ज़्यादा
या शक्कर, और चुटकी-भर से ज़रा ज़्यादा
गरम मसाला
राजमा के साथ चावल तो हैं ही
मुझे पसंद हैं पराठे अजवाइन के
या मट्ठी या रोटी रुमाली
या सादा पापड़
कभी कभी तो
बिना किसी साथ के
तीन तीन कटोरी राजमा
खा जाता हूँ मैं
मुझे, सच, सिर्फ़
माँ के हाथ का
मैरून मीठा राजमा
बेपनाह पसंद है
इसी लिए उस रोज़
जब तुमने पूछा -
सबसे कम क्या पसंद है खाने में
तो मुँह से निकल पड़ा था - राजमा चावल
हाँ ! सबसे कम पसंदीदा भी मुझे
राजमा चावल ही हैं
वे जिनमें नहीं होता
माँ, माँ की भाप का स्पर्श
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