Glorious Days (Letters to you - 12)
Reminiscences from my diary
Apr 19, 2025
Saturday, 0115 IST
Sre
एक सुबह त्रिशूल पर धूप बिखरी थी
एक सुबह उँगलियाँ तुम्हारी मेरी पलकों पर
एक सुबह चार चिनार लिपटे थे धुंध में
एक सुबह मृत्युंजय को जपते मैं और तुम
एक दिन गिरी थी बर्फ़ बिन मौसम
एक दिन झरती बारिश तुम्हारी हथेलियों से
एक दिन कई - कई तथागत लेटे थे नयन मूंदे
एक दिन रंग-बिरंगे पत्थर टापते मैं और तुम
एक शाम नीलगिरि के सिल्हूट में टंका था पूरा चाँद
एक शाम चार नंगे पाँव सड़क-सड़क
एक शाम खासी का गीला आसमान था ठेठ गुलाबी
एक शाम दुनिया सजाते मैं और तुम
एक रात अचानक
मैंने डायरी में दर्ज की थी
कुछ खुशनुमा तारीखें
कुछ खुशनुमा मैं और तुम
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