Ulterior Motives (Letters to you - 6)
Reminiscences from my diary
Tuesday, April 04, 2025
2000 IST, Sre
तुम्हें क्या लगता है
कि मैं जब चाँद को ताका करता हूँ
तो क्या मैं
चाँद को ही देखता हूँ ?
या कि जब भरता हूँ हरसिंगार जेब में
तो क्या मैं
हरसिंगार ही चुनता हूँ ?
जब लेता हूँ किसी बरगद को अपनी बाहों में
तो क्या मैं
पेड़ को गले लगाता हूँ ?
या लिखता हूँ कोई कविता
तो क्या मैं
वाकई लिखता हूँ कोई कविता ?
कि उस रोज़ जब दीवार पर उकेर रहा था मौर्या
तो क्या मैं
महज़ रंग रहा था सफ़ेद चूना ?
खैर ..
सुनो !
तुम भी
गाहे - बगाहे
मुझसे बात करने की कोशिश न किया करो !
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