Dig Deeper (Letters to you - 8)
Reminiscences from my diary
Apr 12, 2025
Saturday 1715 IST
Sre
क्या ऐसा होता है तुम्हारे साथ भी कि ...
किसी-किसी रात या भोरे-भोर बहुत गहरे सपने आएँ, इतने गहरे कि ...
उठने के बाद भी देर तक आँखें सूजी रहें, मन भटकता रहे, एक ख़ुमारी छाई रहे ...
पर मज़े की बात यह कि सब कुछ ठीक-ठीक याद न आये, तुम करो कोशिश ...
उस पूरे दिन, और अगले एक-दो दिन, कि जितना जैसा भी याद है, टुकड़ा-टुकड़ा, लम्हा-लम्हा ...
उन सबको जोड़ो और उकेरो अपना सपना, पर हाथ लगे ...
सिर्फ़ बदहवासी, अजीबियत, लाचारी कि जितना उतरो थाह में ...
उतना ही भूलो सब कुछ, सपनों के अंदर का भी ...
सपनों के बाहर का भी ...
No comments:
Post a Comment