Almost (Letters to you - 16)
Reminiscences from my diary
Apr 25, 2025
Friday, 2045 IST
Murugeshpalya, Bangalore
मैं ठिठक पड़ा था अचानक
ऐसा कैसे हो सकता है ?
लगभग
वही चेहरा, कद-काठी,
रंग, आँखें,
भंवें, होंठ और
होठों पर पपड़ियाँ
वैसी ही
लगभग
दाँत के ऊपर दाँत
जो चमके सिर्फ़ हँसते हुए
उसी तरह
लगभग
ऑफिस से घर नापते हुए
पाँव - पाँव
मेरी दाईं तरफ आता है
एक छोटा - सा कैफ़े
जिसका सब कुछ हरा है
जिसका सब कुछ हरा है
पेस्टल ग्रीन
हल्के हरे रंग का शटर
हल्के हरे रंग की दीवारें
खम्बे, काउंटर
कुर्सियाँ और स्टूल भी
ऐसे ही एक ऊँचे
पेस्टल ग्रीन स्टूल पर
तुम्हें बैठे देखा आज
हाँ !
तुम ! लगभग !
मेरी आखें बड़ी
मुँह खुला
और दिल धक्-धक्
मैं बढ़ने लगा था कैफ़े के अंदर
कि तभी
बाहर निकलते लगभग ने
काटी मुझे
चिकुटी
उसके बाद का पूरा रास्ता
हँसता रहा मैं
जैसे कोई बावरा
लगभग
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